जयपुर(अनिल सारसर): राजस्थान में सफाई कर्मचारी भर्ती को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है वाल्मीकि समाज ने भर्ती नियमों में संशोधन की मांग को लेकर सरकार को अल्टीमेटम दिया है। वाल्मीकि समाज विकास संस्थान के अध्यक्ष दीपक डंडोरिया ने कहा कि अगर सरकार ने भर्ती नियमों में संशोधन कर आवेदन की तारीख को आगे नहीं बढ़ाया। तो पूरे राजस्थान में सफाई कर्मचारी हड़ताल पर चले जाएंगे। जिनमें सरकारी और प्राइवेट दोनों कर्मचारी शामिल होंगे।
दीपक ने कहा कि राजस्थान सरकार ने सफाई कर्मचारी भर्ती में वाल्मीकि समाज के साथ धोखा किया है। इस धोखे को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्योंकि वर्तमान में जो भी शर्तें आवेदन की प्रक्रिया में लागू की गई है। उन्हें सिर्फ धांधली करके ही पूरा किया जा सकता है। ऐसे में महज कुछ लोग ही अब तक आवेदन प्रक्रिया में शामिल हो सके हैं। जबकि वाल्मीकि समाज जिसका मूल रूप से सफाई ही कामकाज है। उस समाज के हजारों युवा आवेदन प्रक्रिया में भी शामिल नहीं हो पाए हैं। जो पूरी तरह गलत और निंदनीय है।
उन्होंने कहा कि इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि वाल्मीकि समाज के युवाओं को आवेदन प्रक्रिया में रियायत देते हुए अनुभव प्रमाण पत्र की बाध्यता को समाप्त किया जाए। इसके साथ ही भर्ती की आवेदन की प्रक्रिया को और आगे बढ़ाया जाए। अगर सरकार ने हमारी इन दोनों मांगों को पूरा नहीं किया। तो प्रदेशभर में वाल्मीकि समाज जिला स्तर पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेगा। इसके साथ ही न सिर्फ सरकारी सफाई कर्मचारी बल्कि, प्राइवेट सफाई कर्मचारी भी कार्य बहिष्कार कर सरकार के खिलाफ हड़ताल पर जाएंगे।
बता दें कि राजस्थान की भजनलाल सरकार ने प्रदेश में 23 हजार 820 पदों पर सफाई कर्मचारियों की भर्ती निकली है। जिसमें आवेदन की आखिरी तारीख 20 नवंबर निर्धारित की गई है। लेकिन इस भर्ती प्रक्रिया में आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के पास एक साल का सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करने का अनुभव प्रमाण पत्र होना अनिवार्य है। जिसको लेकर पिछले लंबे वक्त से प्रदेशभर में वाल्मीकि समाज के साथ श्रमिक संगठन आंदोलनरत हैं। जिसको लेकर पिछले दिनों यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा के घर के बाहर भी विरोध प्रदर्शन किया गया था।
सरकार का कहना है: झाड़ू लगाने की ट्रेनिंग लो !
वाल्मीकि समाज में इस नियम से भारी आक्रोष है कि आखिर झाड़ू लगाने के लिये उम्मीदवारों के पास एक साल का सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करने का अनुभव प्रमाण पत्र होना अनिवार्य है। ऐसा क्यूँ? अब ऐसे में संविधान में भी मेहतर, भंगी, बाल्मीकि, लालबेगी, धारकर बनाम वाल्मीकि आदि जिसकी जाति ही उसके पेशे से निर्धारित की गई हो अब उसे भी सर्टिफिकेट देना होगा कि उसे झाड़ू लगाना आता है। ये ज्यादती है है वाल्मीकि बनाम मेहतरों को फिर से पीछे धकेलने की। क्योंकि अब हम ऊँची जाति के लोगों की आँखों में खटकने लगे है। इसके बहुंत सारे कारण हैं। जो यहाँ गिनाए नहीं जा सकते। लेकिन इतना अवश्य हैं कि जब भंगी की औलाद सुबह 4 बजे महंगी बाइक पे झाड़ू के काम पर निकलता है तो ऊंचीं जाति के लोगों की छाती पर सांप लौट जाते है। यही लोग सत्ता में भी है, कानून भी यही बनाते है और हम छले जाते हैं। जैसे कि राजस्थान में भर्ती के मामले में वाल्मीकि समाज का जो दर्द झलका, उससे यही जाहिर होता है अब वाल्मीकि समाज का भविष्य भी झाड़ू लगाने के मामले में सुरक्षित नहीं रहा। ऊंची जाति के लोगों ने उसपर भी अतिक्रमण करना शुरू कर दिया हैं.
गंदगी साफ़ करने के लिए किसी ट्रेनिंग की जरुरत है क्या?
सदिया गुजर गई किसी बुजुर्ग ने अपने बेटे कि शादी के लिए लड़की देखने जाने पर लड़की से ये शायद ही ये सवाल किया होगा कि ” बेटी तुम्हे झाड़ू लगाना आता है क्या?” कभी नहीं! सामान्य ज्ञान की बात है, गृहिणी है तो झाड़ू लगाती ही होगी। अपने घर की साफ़-सफाई करती होंगी। उन्हें सर्टिफिकेट की क्या जरुरत। ऊँची जाति की महिलाएं अपने घर में छोटी सी झाड़ू से घर साफ़ कर लेती हैं। और दुनियां को पता भी नहीं चलता कि कौन सी बेटी/बहु/मां झाड़ू लगाती हैं।
लेकिन हम भंगी और हमारी मां, बहने सरे बड़ी सी झाड़ू लेकर बाजार में सड़कों पर झाड़ू लगाती है। पूरी दुनियां देखती हैं। फिर चाहे मौसम बारिश, ठंड या गर्मी का हो। आश्चर्य ! फिर भी सर्टिफिकेट की जरुरत हैं।
हम झाड़ू के काम को अंजाम देते है। ये सब सैकड़ों सालों से चला आ रहा है। अब शायद ये लोग हमारी तरक्की से से परेशान हो गए हैं। या इन्ह्ने हमारा रहन-सहन पसंद नहीं आ रहा हैं।
सावधान!
वाल्मीकि समाज डाटकाम की एक ही अपील : ” वाल्मिकियों झाड़ू लगाना छोड़ो “