लंबे अंतराल के बाद 2024 में जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक होने वाले हैं. इस चुनाव में वाल्मीकि समाज के 10 हजार लोग पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे, जिन्हें धारा 370 और 35ए के तहत दशकों तक अपने अधिकारों से वंचित रखा गया था.
जम्मू-कश्मीर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव न केवल राजनीतिक, सुरक्षा के लिहाज, बल्कि इलाके में सामाजिक ताने-बाने को नया आयाम देने के लिए भी ऐतिहासिक होने जा रहे हैं. इन चुनाव में पहली बार वाल्मीकि समाज के लगभग 350 परिवार के 10 हजार लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इस समाज को जम्मू-कश्मीर में स्पेशल स्टेट्स आर्टिकल 370 और 35ए के तहत दशकों तक मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया था.
वाल्मीकि समुदाय के कई लोगों के लिए ये वोट के अधिकार से बढ़कर कहीं ज्यादा है. ये अधिकार उनके सपनों को पूरा करने वाला है, क्योंकि धारा 370 और 35ए के वक्त वाल्मीकि समाज के युवा सरकारी नौकरी की परीक्षाों के पात्र नहीं थे. ऐसा इसलिए कि उनके पास अनुच्छेद 370 के तहत आवश्यक स्थायी निवास प्रमाणपत्र यानी (PRC) नहीं था. जिसकी वजह से वहां रह रहे वाल्मीकि समाज के बच्चे और युवा वोट देने के साथ-साथ सरकारी नौकरी के पात्र नहीं थे.
’45 साल का हूं, पर पहली बार डालूंगा वोट’
विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालने पर खुशी जाहिर करते हुए वाल्मीकि समाज सभा के अध्यक्ष घारु भट्टी ने बताया, ‘आजाद भारत में पहली बार 65 साल बाद हमने विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल रहा है. मैं 45 साल का हूं और मैं विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालूंगा. देखिए, हम कितना लेट हो गए. पर देर आए, दुरुस्त आए. इसका पूरा श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को जाता है. जम्मू-कश्मीर में कई सालों से हमारे लोकतंत्र अधिकारों का हनन हो रहा था.’
उन्होंने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में आज हमारे लिए सभी परिस्थितियां नई हो गई हैं. पिछले पांच सालों में हमारे जीवन में बहुत बदलाव आया है. पहले हमारे बच्चे राज्य के किसी भी विभाग में फोर्थ क्लास की नौकरी के लिए भी आवेदन नहीं कर सकते थे, लेकिन आज हमारे बच्चे उन नौकरियों को आसानी से मिल रही हैं.
‘तत्कालीन सरकार ने हमे धोखे में रखा’
इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में पहले धारा 370 और 35ए निरस्त होने से पहले यहां, पीआरसी का होने बहुत जरूरी था. आपको जम्मू-कश्मीर स्टेट का नागरिक होना जरूरी था. पहले जम्मू-कश्मीर के नागरिक वही होते थे, जिनके पास यहां जमीन थी और उनका एक रिकॉर्ड होता था. उन्होंने यह भी बताया कि 1975 में यहां की राज्य सरकार हम लोगों को सफाई के काम के लिए पंजाब से लाई थी. तत्कालीन सरकार ने हमे धोखे में रखा, हमने जम्मू-कश्मीर को साफ-सफाई दी. हमारी यहां तीन पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन हम कभी-भी यहां का नागरिक नहीं माना गया और न ही हम लोगों के लिए कोई स्कीम बनाई गई. ये हमारे युवाओं के लिए एक अभिशाप की तरह था.
वहीं, मीना भट्टी ने बताया कि वो वाल्मीकि समाज की पहली महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया. मीना लॉ की छात्रा हैं जो समुदाय के कई लोगों के लिए प्रेरणा दे रही हैं. उन्होंने समान अधिकारों के लिए लड़ने के अपने अनुभव को साझा किया और बताया कि कैसे वह अब युवा लड़कियों को उनके सपनों को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन कर रही हैं. वाल्मीकि समाज की कानून की छात्रा एकता मट्टू ने भी इसी तरह की भावनाओं को दोहराते हुए उज्जवल भविष्य की आशा व्यक्त की.
वाल्मीकि समाज में जश्न
वहीं, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं. वाल्मीकि समुदाय अपनी नई पहचान का जश्न मना रहा है. दशकों तक, वे अनुच्छेद 370 के प्रतिबंधों से बंधे हुए थे, जम्मू-कश्मीर के समाज में पूरी तरह से एकीकृत नहीं हो पाए थे. अब वे न केवल मतदान कर रहे हैं, बल्कि बेहतर भविष्य का सपना भी देख रहे हैं, जहां उनके बच्चे पुराने कानूनों की बाधाओं के बिना अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त कर सकें.
1975 में पंजाब से जम्मू लाए गए थे वाल्मीकि समाज के लोग
बता दें कि वाल्मीकि समाज के लोगों के पूर्वजों को साल 1975 में तत्कालीन सरकार द्वारा महामारी के दौरान सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने के लिए पंजाब से जम्मू लाया गया था. उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, उन्हें कभी-भी स्थायी निवासी का दर्जा नहीं दिया गया. जिससे उन्हें मतदान और जम्मू-कश्मीर के निवासियों को मिलने वाले अन्य अधिकारों से वंचित कर दिया गया. दशकों तक वाल्मीकि दोयम श्रेणी के नागरिक के रूप में रहते थे जो क्षेत्र की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने में असमर्थ थे. हालांकि, 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद वाल्मीकि समाज के सदस्यों को 2020 में अधिवास प्रमाण पत्र दिए गए थे.
साभार: aajtak.in