राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (SC) रिजर्वेशन में कोटे में कोटा दे सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने इसके खिलाफ लगी पुनर्विचार याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज कर दिया।
CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा- ‘पुराने फैसले में ऐसी कोई खामी नहीं है, जिस पर फिर से विचार किया जाए।’
बेंच ने कहा-
पुर्नविचार याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के 1 दिसंबर को दिए गए फैसले को खारिज करने का कोई आधार नहीं बताया गया है। इसलिए पुर्नविचार याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
1 अगस्त को कोर्ट ने क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को फैसला सुनाया था कि राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति, यानी SC के रिजर्वेशन में कोटे में कोटा दे सकेंगी। अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलट दिया। तब कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह हैं, इसमें शामिल जातियों के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने राज्य सरकारों को 2 निर्देश दिए थे कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं। इसके लिए दो शर्तें होंगी…
पहली: अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दे सकतीं।
दूसरी: अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए।
24 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया कोर्ट ने 24 सितंबर को ही इन याचिकाओं पर सुनवाई की थी, लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया था। इन याचिकाओं को संविधान बचाओ ट्रस्ट, अंबेडकर ग्लोबल मिशन, ऑल इंडिया SC-ST रेलवे एम्प्लॉयी एसोसिएशन समेत कई संस्थाओं की ओर से दायर किया गया था।
फैसले का आधार: अदालत ने फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया है, जिनमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण का फायदा उनमें शामिल कुछ ही जातियों को मिला है। इससे कई जातियां पीछे रह गई हैं।
उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कोटे में कोटा होना चाहिए। इस दलील के आड़े 2004 का फैसला आ रहा था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों को सब-कैटेगरी में नहीं बांट सकते।
फैसले के मायनेः राज्य सरकारें अब राज्यों में अनुसूचित जातियों में शामिल अन्य जातियों को भी कोटे में कोटा दे सकेंगी। यानी अनुसूचित जातियों की जो जातियां वंचित रह गई हैं, उनके लिए कोटा बनाकर उन्हें आरक्षण दिया जा सकेगा।
मसलन- 2006 में पंजाब ने अनुसूचित जातियों के लिए निर्धारित कोटे के भीतर वाल्मीकि और मजहबी सिखों को सार्वजनिक नौकरियों में 50% कोटा और पहली वरीयता दी थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को फैसला सुनाया था कि राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति, यानी एससी के आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा दे सकेंगी। अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलट दिया। 20 साल पहले कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां एकरूप समूह हैं, इसमें शामिल जातियों के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी और कहा था कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं।
Source: bhaskar.com