देश में रावण को मानने वाले लाखों लोग हैं. आदि धर्म समाज नाम का संगठन लोगों को लंकेश का अनुयायी बनाने के काम में जुटा है. इस समाज के प्रमुख पंजाब निवासी दर्शन रत्न रावण हैं. इस समय 19 राज्यों में लंकेश के लाखों अनुयायी हैं. ज्यादातर लोग वाल्मीकि समाज से हैं।
दिल्ली के पास स्थित औद्योगिक नगर फरीदाबाद के एनआईटी रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर एनएच-4 में रावण का भव्य मंदिर बना है. मंदिर में पूजा होती मंदिर में संत कबीर, महर्षि वाल्मीकि और रावण की फोटो लगी है।
फरीदाबाद जिले के वाल्मीकि समाज द्वारा दशहरे के दिन रावण की पूजा अर्चना की जाती है। इसी के चलते आज प्रातः काल एक प्रभात फेरी निकाली गई। यह प्रभात फेरी एनआईटी के केसी रोड स्थित वाल्मीकि मंदिर से निकाली गई, जो कि एसी नगर, गांधी कॉलोनी होते हुए वापस मंदिर परिसर में समाप्त हुई।
बता दें कि यह समाज महर्षि वाल्मीकि समाज द्वारा लिखी गई रामायण का अनुसरण करते हैंऔर उसमें रावण को श्रेष्ठ मानव बताया गया है। दशहरा को शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। वाल्मीकि मंदिर के सेवादार विनोद ने बताया कि केसी रोड स्थित मंदिर करीब 500 वर्ष पुराना है और इसकी काफी मान्यता है। यहां पर प्रतिदिन रावण की पूजा होती है। रावण की बहन सुपर्णखा के साथ लक्ष्मण ने दुराचार किया था। उसका प्रतिशोध लेनेके लिए माता सीता अपहरण किया था, लेकिन सीता के साथ किसी भी तरह दुराचार नहीं किया था।
पाकिस्तान से आए लोग भी करते हैं पूजा
विनोद ने बताया कि भारत पाकिस्तान के बंटवारेके दौरान एनआईटी में आकर बसे वाल्मीकि समाज के लोग भी इस मंदिर में आकर पूजा करतेहैं। रावण वेदों का ज्ञाता होने के साथ एक वैज्ञानिक भी था। उसने कई तरह की जटिल बीमारियों को समाप्त करने का उपचार ढूंढ लिया था और इसका जिक्र भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में उल्लेख भी है।
रावण के कुल के नाम पर रखे बच्चों के नाम
विनोद ने बताया कि उनके परिवार मे कई बच्चों के नाम रावण के कुल के नाम पर है। इनके परिवार के सुलोचना, मेघनाथ,अक्षय बच्चों के नाम हैं। विनोद ने बताया कि पूरा वाल्मीकि समाज रावण के आदर्शों का प्रचार प्रसार कर रहा है। अभी उनके एक पहलु को समाज के सामने प्रस्तुत किया गया है, लेकिन दूसरा पहलु यह है कि वह धर्म, संस्कृति का रक्षा करनेवाला था। इसके अलावा वह श्रेष्ठ वैज्ञानिक भी थे। मंहत आदि धर्मगुरुगु दर्शन रत्न रावण रावण के आदर्शों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
बिसरख: जहां न रामलीला होती है और न रावण दहन
ग्रेटर नोएडा के पास बिसरख को रावण का पैतृक गांव होने का दावा किया जाता है. यहां न तो रामलीला होती है, न ही रावण दहन. यहां रावण का मंदिर है. उसकी पूजा होती है. गांव के लोग बताते हैं कि बिसरख में करीब छह दशक पहले पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया. उस दौरान एक मौत हो गई और लीला अधूरी रह गई. फिर रामलीला का आयोजन हुआ और एक व्यक्ति की मौत हो गई और लीला पूरी नहीं हुई. तब से यहां रामलीला का आयोजन नहीं हुआ.
देश में रावण को मानने वाले लाखों लोग हैं. आदि धर्म समाज नाम का संगठन लोगों को लंकेश का अनुयायी बनाने के काम में जुटा है. इस समाज के प्रमुख पंजाब निवासी दर्शन रत्न रावण हैं. इस समय 19 राज्यों में लंकेश के लाखों अनुयायी हैं. ज्यादातर लोग वाल्मीकि समाज से हैं.
Source: livehindustan.com, news18.com
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